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पश्चिम सिंहभूम जिले में ग्राउंड रियलिटी को नजरअंदाज कर बनाई जा रही योजनाएं, स्कूलों में लाखों के सामानों की सुरक्षा बनेगी चुनौती

दिस. 5

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शिक्षक भी परेशान, सप्लाई के बाद कहां रखें सामान !!!

स्कूलों में कमरों की कमी, बरसात में टपकते हैं छत, दरवाजे भी टूटे


तारिक अनवर। गोइलकेरा

पश्चिम सिंहभूम जिले में योजनाएं धरातल की स्थिति से अवगत हुए बिना बाबुओं के वातानुकूलित दफ्तरों में बनाई जाती है। डीएमएफटी फंड से स्कूलों के लिए सामग्री खरीद और पेंटिंग की कार्य योजना इसका जीता जागता उदाहरण है। अफसरों ने जिले के 890 स्कूलों में सामानों की सप्लाई का ठेका गुजरात की कंपनी को तो दे दिया लेकिन ग्राउंड रियलिटी ऐसी है कि कई स्कूलों में इन सामानों को सुरक्षित रखने की जगह तक नहीं है। शिक्षक परेशान हैं कि सामग्रियों की आपूर्ति के बाद इसे कहां रखा जाए।



ज्ञात हो कि डिस्ट्रिक्ट मिनरल फाउंडेशन ट्रस्ट (डीएमएफटी) फंड से जिले के 18 प्रखंडों के 890 स्कूलों के लिए आठ प्रकार की सामग्रियों की आपूर्ति की जाएगी। गुजरात व दमन एवं दीव की कंपनी गिलोन इंडस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड को करीब 41 करोड़ रुपये में इसका ठेका दिया गया है। इधर स्कूल भवनों की जर्जर हालत, अधिकांश स्कूलों में जगह और कमरों की कमी से शिक्षक परेशान हैं।



जो कमरे ठीक ठाक दिखते हैं, वहां भी बरसात के दिनों में छत से पानी टपकता है। जहां लाखों रुपये के सामानों को सुरक्षित रखना भी चुनौती है। इस खबर के साथ हम जिन स्कूलों की तस्वीर लगा रहे हैं, उन्हें ही देख लें। वर्षों से स्कूल के कमरे में दरवाजे तक नहीं लगे हैं। स्कूल के कार्यालय की अलमीरा तक टूटी हुई है।



माननीयों की चुप्पी से डीएमएफटी फंड का दुरुपयोग जारी

दरअसल जिले में 'माननीयों' की चुप्पी के कारण भी डीएमएफटी फंड का दुरुपयोग जारी है। सैकड़ों स्कूलों में तड़ित चालक लगाने में भारी भरकम प्राक्कलन का मामला भी सवालों के घेरे में है। एक तड़ित चालक की प्राक्कलित राशि एक लाख 74 हजार 500 रुपये है। जानकर बताते हैं कि आधे से भी कम राशि का प्रावधान कर इस कार्य को पूरा किया जा सकता था। लेकिन जिले के जनप्रतिनिधियों की खामोशी से डीएमएफटी में मनमानी थम नहीं रही।



कमीशनखोरी का लगता रहा है आरोप

डीएमएफटी फंड हो या जिले में अन्य विकास योजनाओं पर खर्च की जा रही सरकारी राशि, कमीशनखोरी का आरोप लगता रहा है। संभवतः पूरे झारखंड राज्य में पश्चिम सिंहभूम जिला इसको लेकर सबसे ज्यादा बदनाम है। यहां टेंडर मैनेज और खुल्लम खुल्ला सरकारी योजनाओं में कमीशनखोरी इस कदर हावी है कि योजनाओं की गुणवत्ता ताक पर रख दी जाती है। ठेकेदारों के लिए हैवेन बने जिले में जनता के पैसों की लूट मची है।

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