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महिषासुर मर्दनी के नाम से भी जानी जाती हैं मां कात्यायनी

7 अक्टू. 2024

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उपेंद्र गुप्ता


रांची :  नवरात्रि का छठा दिन मां दुर्गा के नौ स्वरूप में से एक मां कात्यायनी को समर्पित है. प्राचीन काल में एक प्रसिद्ध महर्षि थे, जिनका नाम कात्यायन था. उन्होंने भगवती जगदम्बा को पुत्री के रूप में पाने के लिए उनकी कठिन तपस्या की थी. कई हजार वर्ष कठिन तपस्या के बाद महर्षि कात्यायन के यहां देवी जगदम्बा ने पुत्री रूप में जन्म लिया. कात्यायन ऋषि की पुत्री होने की वजह से देवी को कात्यायनी नाम से जाना जाता है. मां दुर्गा के छठे रूप मां कात्यायनी को महिषासुर मर्दनी के नाम से भी जाना जाता है।

 

ब्रज की गोपियों ने की सबसे पहले पूजा

 

मान्यता है कि माता के इस स्वरूप की पूजा से साधक को रोग-दोषों से मुक्ति मिलती है. साथ ही सुख-समृद्धि की प्राप्ति भी होती है. पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, भगवान कृष्ण की प्राप्ति के लिए गोपियों ने माता कात्यायनी की पूजा की थी. ऐसे में इनका संबंध विवाह से जुड़े मामलों से भी है. ऐसी मान्यता है कि जो भी इनकी पूजा करता है उसे इच्छानुसार वर की प्राप्ति होती है. जानिए मां के इस स्वरूप, पूजा विधि और भोग के बारे में.


मां को पान और शहद का लगाएं भोग


हिंदू पंचांग की मानें तो षष्ठी तिथि की शुरुआत 8 अक्टूबर दिन मंगलवार को 11:17AM से होगी. जिसका समापन 9 अक्टूबर को दिन बुधवार 12:14PM पर होगा. मां कात्यायनी को शहद या मीठे पान का भोग लगाना बेहद शुभ माना गया है.

मां कात्यायनी को शहद बहुत ही ​प्रिय है, इसलिए पूजा के समय मां कात्यायनी को शहद का भोग अवश्य लगाना चाहिए. कहा जाता है कि मां कात्यायनी ने देवताओं के कष्ट हरने के लिए महिषासुर से युद्ध की थी. युद्ध के दौरान जब मां कात्यायनी थक गईं थीं तो उन्होंने शहद के साथ पान खाया था, इसे खाने के बाद उनकी थकान दूर हो गई थी. इसलिए शहद काफी प्रिय है. पूजन में शहदयुक्त पान अर्पित किया जाता है. इसके साथ ही शहद से बनी चीजों का भी भोग लगाया जाता है. मां कात्यायनी को लाल रंग अतिप्रिय है. इस वजह से पूजा में आप मां कात्यायनी को लाल रंग के गुलाब का फूल अर्पित करें. इससे मां कात्यायनी आप पर प्रसन्न होंगी. उनकी कृपा आप पर रहेगी. मान्यता है कि इससे व्यक्ति को किसी प्रकार का भय नहीं सताता.


चार भुजाओं वाली अभयमुद्रा में हैं मां





 मां दुर्गा का ये स्वरूप अत्यंत चमकीला और भास्वर है और वे ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं. इनकी चार भुजाएं हैं, इनमें से दाहिनी तरफ का ऊपर वाला हाथ अभयमुद्रा में है. वहीं नीचे वाला हाथ वरमुद्रा में है. इसके अलावा बाईं तरफ के ऊपरवाले हाथ में तलवार और नीचे वाले हाथ में कमल-पुष्प है. माता का वाहन सिंह है.

 

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